नब्ज़: गूँज दबते स्वरों की
कुर्सी। जी! कुर्सी की जो महामारी, अब हमारी भी हो गई है, इसकी जड़ें हमारी नहीं हैं। इसका उद्गम और प्रसार पश्चिम में हुआ। कुर्सी का इतिहास मिस्र की सभ्यता से ताल्लुक़ रखता है। वहाँ पर कुर्सी की शुरुआत हुई समाज में ऊँचे ओहदे को दर्शाने के से। जो कुर्सी पे बैठता, वो ऊँचा होता। या जो ऊँचा होगा, वो कुर्सी पे विराजेगा। ऊँचा-नीचा साबित करने में बहुत हुड़दंग हुई, जो आज भी जारी है, और रहेगी। यह जंग शायद हमारी जाति के अंत का कारक भी बने। कुर्सी का संक्रमण हर जगह फैलता गया। ऊँचाई सबको अच्छी लगती है, या यूँ कहें कि निचाई लावारिस होती है। निचले पायदान का आदमी कभी भी अपने कारण की जिम्मा अपने पे नहीं मढ़ता है। कुर्सी मानसिक संकीर्णता से ग्रसित होती है। इसमें पशु प्रवृत्ति होती है- एक नाद में दो बैल बर्दाश्त नहीं! यह दो लोगों को एक साथ सह नहीं सकती। पर हाँ, अगर बच्चे हों, तो संभव है। यदि दो लोग एक साथ बैठने का प्रयास करें, तो वह टिकाऊ नहीं होता। सब लोग कुर्सी पा नहीं सकते। आम लोगों की तादात हमेशा अधिक होती है। तब आम लोगों के बारे में सोचने का प्रयास हुआ,और बेंच ने जन्म लिया। खुला हुआ, बिना सीमा के, समाहित करने वाला। बेंच पर कितने हूँ लोग हों, सहनशीलता और आपसी भाईचारे में साथ बैठ सकते हैं। पछिमा बहा और धीरे-धीरे कुर्सी पूरब में भी बहकर आ गई। भारत में भी कुर्सी पहुँची। अपने यहाँ इसकी कई सारी ऊँचाइयाँ तय हुईं। आम जनता के लिए बेंच की प्रथा भी बहकर आई, पर भारत में आकर बेंच भारी हो गया, उसपे लोड उसकी क्षमता से कई गुना था। यदि बेंच का दर्द साझा करना हो, तो ट्रेन के चालू डिब्बे में सफ़र कर लीजिए। अपने यहाँ बैठने के लिए ज़मीन थी, फिर लकड़ी के गुटके हुए। फिर उनको समतल करके पीढ़ा बना, जिसने घुटने की पीड़ा से बहुतों को राहत दिलाई। पीढ़े की ऊँचाई-चौड़ाई बढ़ी और मचिया बनी, जो और फैलकर खटिया बनी
। खटिया बेंच का ही परिवर्तित रूप होने के कारण अपने DNA में कई लोगों को समाहित करने का सद्भाव रखती है। वही दूसरी और कुर्सी ही हर जगह असद्भाव की जड़ बनती जा रही है। ख़ैर, मेरा मुद्दा कुर्सी नहीं है। मैं तो गूँज दबते स्वरों की नब्ज़ पा गया था, जो आपसे साझा करना चाह रहा था। गूँज की तस्वीर उस जगह से आई, जो आज भी खुलेपन का अड्डा है-खटिया, चारपाई।

आप घर में कुर्सी सैकड़ों रखिए, पर खटिये से परहेज न करिए। क्योंकि जब कभी झुण्ड-के झुण्ड मेहमान बिना पूर्व सूचना के टपक पड़ेंगे, उस वक़्त खटिया आपकी लाज की बीमा बनेगी।
मित्र श्री अजित जी का आभार 🙏🏽।
आभार!
गूँज दबते स्वरों की (कहानी संग्रह)। भारतीय ज्ञानपीठAMAZON I FLIPKART
Bahut achha bhaiya 🙏
जवाब देंहटाएंIse kahte hai lekhan, ek sadharan si tasweer ke bahane se itani sari gyan ki bate sajha kar diya aapne!
Bahut hi adbhut Pratibha ka pradarshan!!