सैंकड़ों साल पहले...
(आज से सौ साल बाद, 2120 में ऐसी कहानी लोग पढ़ेंगे)
श्याम भी सजगता के मामले में राम से रत्ती भर भी कम न था, लेकिन वह तब तक सुध नहीं लेता, जब तक पानी नाक न छू जाए। वो समस्या को स्वीकारने में देर करता। मुसीबत को नाम देने से कतराता। ‘समय के साथ चीजें ठीक हो जाती हैं’ के कथन का असमय दोहन करता था। कई बार भाग्य साथ देता, पर कुछ एक बार वह मुँह की भी खाता।
२०१९ में एक कोरोना नामक भयंकर सांक्रामक महामारी फैली। पूरा संसार त्राहि-त्राहि कर उठा। इसने किसी न किसी रूप में सबको छुआ। हाथ धोना, २ गज़ की दूरी, नाक-मुँह मास्क से ढँकने, इत्यादि के अलावा दूसरा कोई कारगर उपचार न था। कवच-कुण्डल ही चिकित्सा थी।
दोनों दोस्तों-राम और श्याम-के पड़ोस में भी महामारी ने दस्तक़ दी। राम ने ‘बचाव ही सर्वोत्तम उपचार है’ वाली बात को खूँट बाँध लिया। उसने अपना किला मज़बूत किया-जन, धन और सूचना की दीवार से। लोगों से मिलना-जुलना बंद, लक्षणों पर पैनी नज़र, घर में सबका सुबह-शाम तापमान मापन, स्वच्छता का पूजन उसकी दैनिक क्रिया में आ चुका था। उसने नए हालातों के अनुरूप अपने को ढाल लिया। उसके पास जानकारियों के सही स्त्रोत थे। 'कौआ कान लेकर उड़ गया' सुनने पर कौए के पीछे दौड़ने के बजाय पहले वो अपना कान टोहता था। 'सुनने में आया है', 'पता चला है' इत्यादि से शुरु होने वाले तथ्यों को संशय से सुनता। घर का वही इक़लौता था, जिसे बाहर जाना पड़ता था। बाहर जाते समय चिकित्सकीय गुणवत्ता का मास्क (N95), सैनिटाइज़र के तीर उसके तरकश में होते। अति सतर्कता के चौखट पर शंका हमेशा खड़ी रहती है। एक दिन राम को थोड़ी आशंका हुई कि उसको महामारी के लक्षण हो गए हैं। वो तुरंत जाँच करवाने गया। जब तक परिणाम नहीं आया, राम घर में और सबसे अलग, मास्क लगाकर रहा। घर का कोई सदस्य उसके आस-पास भी नहीं खटक सकता था। जब दूरी में ही भलाई हो, तो मोह-माया भला कैसे आड़े आती। दो दिनों बाद रिपोर्ट आई, सब कुछ सही था। उसके बाद भी राम हमेशा सैनिक की भाँति सतर्क रहा।
श्याम को भी इन सबकी जानकारी थी। लेकिन वह इस बीमारी को मौसमी सर्दी-जुक़ाम से अधिक तवज्ज़ो नहीं देता। इतने बड़े शरीर को एक दीख भी न सकने वाला वायरस भला क्या नुक़सान पहुँचा सकता है? उसने अपनी दिनचर्या में तनिक भी बदलाव नहीं किया। उसका और पूरे परिवार का मास्क न लगाना, मिलना-जुलना चलता रहा। जब भी राम और श्याम की कुशल-क्षेम की बातें फ़ोन पर हुआ करतीं, तब राम विशेष सावधानी बरतने की सीख देता। लेकिन एकाएक किसी का व्यक्तित्व परिवर्तन कैसे हो सकता था। श्याम अपने ढर्रे पर चलता रहा। अचानक एक दिन श्याम की धर्मपत्नी को महामारी के लक्षण दिखे, उन्होंने श्याम से कहा,
"सुनते हैं जी, मेरा माथा तड़क रहा है।"
"अरे! कुछ तनाव ले रही होगी, थोड़ा सो जाओ, ठीक हो जाएगा।"
"नहीं जी, शरीर भी तप रहा है।"
श्याम ने बिना बुख़ार मापे ही, "ऊपर-नीचे होता रहता है, ठीक हो जाएगा।"
आगे बोलने का फायदा नहीं था। धर्मपत्नी को लगा कि इंतज़ार की दवा लेकर देखती हूँ। मगर प्रतीक्षा से बात नहीं बनी। बदन दर्द, साँस बाधा और शुरु हो गया। तभी राम का कुशल-क्षेम वाला फ़ोन आया। राम ने हिदायत दी कि भाभी जी की जाँच करवाकर निश्चिन्त हो जाओ। फिर भी श्याम ने राम की बात एक कान से सुनकर दूसरे से पार करा दी। पत्नी का स्वास्थ्य बिगड़ता गया। वह समस्या से बचता रहा, अपने आपको सब ठीक है कहकर दिलासा देता रहा। मगर श्याम कूप-मण्डूप था। शहर के बज्रपात से वह अनजान था। कुछ दिन और बीते, श्याम को और घर के दूसरे लोगों में भी लक्षण शुरु हो गए। पत्नी को साँस लेने में कठिनाई बढ़ती जा रही थी। श्याम ने डॉक्टर से संपर्क किया। कोई डॉक्टर फ़ोन उठाने को तैयार तक नहीं! धर्मपत्नी को लेकर एक अस्पताल से दूसरे के चक्कर काटना शुरु!! कहीं भी उपचार संभव न था। हर जगह महामारी से पीड़ित लोग इलाज करवा रहे थे। थककर श्याम ने राम को फ़ोन लगाया। राम ने आपात स्थिति में अपने लिए अस्पताल में बेड आरक्षित करके रखा था। उसको श्याम की पत्नी को दिलवा दिया। ऐन मौक़े पर दोस्त दोस्त के काम आया और जान बच गई। श्याम ने अपना और परिवार के लोगों का भी परीक्षण करवाया। दिक़्क़त मिली। समय रहते उपचार हुआ और सारे लोग सकुशल घर लौटे।
इस घटना के बाद श्याम राम को अपना गुरु मानने लगा।
इस महामारी के समय में जागरूक करती यह कहानी बहुत ही प्रेरणादायक है!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रयास !!
धन्यवाद अजित भाई 🙏🏽
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंBahut achhi aur prernadayak kahani hai
जवाब देंहटाएंसमय की कद्र जो लोग करते हैं समय उनकी कद्र करता है।
जवाब देंहटाएंआज की विभीषिका पर अच्छी कहानी।
साधुवाद
Very nice kahani
जवाब देंहटाएंकोरोना के इस संकटकाल में यह कहानी एक औषधि की तरह है जिससे दवा ना होते हुए भी यह बचाव के लिए एक प्रेरणा देती है धन्यवाद
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