‘गूँज: दबते स्वरों की’ (कहानी संग्रह) भारतीय ज्ञानपीठ
सादर प्रणाम,
बिना चाहे, बिना सपना देखे भी कुछ अच्छी चीज़ें जीवन में हो जाती हैं। चाहे वो सफ़र में किसी ऐसे अनजान आदमी का मिलना हो, जो जीवन में बहुत गहरी छाप छोड़ता हो। चाहे पुश्तैनी ज़मीन को खोदते समय हुण्डी का मिलना हो, वैसे यहाँ तो मन के किसी ताख पर लालच की पोटली रखी रहती है। हम जैसे बौने बुद्धि और नौसिखियों का पन्नों पर उतरना भी हुण्डी के मिलने जैसा ही है। इसकी कल्पना न तो कभी की गई थी, न ही यह हमारे जीवन के ‘To Do List’ में थी।
‘गूँज: दबते स्वरों की’ (कहानी संग्रह) केवल चलने में विश्वास की यात्रा का ठहराव है। यह यात्रा अपनों ने शुरु करवाई, अपनों की बातें लिखी; प्यार पाई, दुलार और सीख से निखरी।
भारतीय ज्ञानपीठ से इसका प्रकाशन हमारे लिए अंधों के हाथ बटेर का लगना है। हम इसको बड़ी ही विनम्रतापूर्वक, पैर ज़मीन में गड़ाकर, अपनों के आदेश के रूप में ले रहे हैं। ‘गूँज’ रूपी पड़ाव को आपसे साझा करते हुए हमें बेहद ख़ुशी है, साथ ही है भारी ज़िम्मेदारियों का बोध।
लगभग १ मिनट के इस विडीओ में आपको इस यात्रा की झाँकी देने का प्रयास है। 'गूँज: दबते स्वरों की' क़रीबी पुस्तक भण्डारों और ऑनलाइन (amazon/Flipkart) उपलब्ध है।
आशीर्वाद और समीक्षा की राह में...
धक-धक करती धड़कनों के साथ आपके
गीता(Cover Design, चित्रांकन), नवीन (शब्द)
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