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शिक्षक केंद्रित समाज: क्यों और कैसे; संतुष्ट-सम्मानित शिक्षक की आधारशिला मज़बूत देश की आवश्यकता।

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 नमस्ते,  आज बात करते हैं- गुरु, जो ब्रह्म हैं, नहीं-नहीं, उनसे भी ऊपर हैं; ब्रम्हाण्ड में उनकी स्थिति की, और कैसे छात्र उस स्थिति को और बेहतर बना सकते हैं। आकर्षण का अकारण सपने में बस जाना: बात बहुत छोटी-सी, आम व सरल है। दो बातें: जिस चीज़ को प्रोत्साहन मिलता है, वह अपने-आप निखरती जाती है; जिस चीज़ से लोग आकर्षित होते हैं, लोगों के सपनों में आने लगती है। अब चाहे गणित से दूर भागते बच्चे को उसकी छोटी-सी अंकीय उपलब्धि पर पीठ थपथपाना हो, या फिर नीली बत्ती को देखकर लोगों की मुण्डी का घूम जाना हो, या फिर असलाहों से घिरे मंत्री जी का काफ़िला हो, जिससे भी लोग प्रोत्साहित-आकर्षित होते हों, वह बहुत सारे लोगों के सपने में आने लगती है। यह आकर्षण सकारात्मक है या नकारात्मक, इस लेख की विषयवस्तु में नहीं है। कभी मेरे दोस्त ने बताया कि मुझे IAS अधिकारी बनना है। मैंने पूछा क्यों ? अनेक कारणों में से एक महत्वपूर्ण था -नीली बत्ती। खेल जगत की बात करें, उदाहरणों का मैदान खचाखच भरा है। ध्यानचंद की हॉकी को ही ले लीजिए। अब कुछ लोगों के जूनून को दरकिनार कर दें, तो अब कोई हॉकी खिलाड़ी नहीं बनना चाहता। कबड्डी ने दुब

कविता: हो या नहीं?

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  ज़िंदगी ख़ुद शर्त जी सको, तो ज़िंदा हो तुम। गले में बंधन पड़ सकता नहीं, अगर शेर दिल परिंदा हो तुम। क्या करोगे ज़माने की नज़रों में उठकर, जब शीशे से शर्मिंदा हो तुम। जियो, नहीं कि दिलों में बस जाना है, जियो, यूँ कि ज्वाला बन बाशिंदा हो तुम। याद रखो आदमी आँख मूँदी भेड़ नहीं,  काल पे अपनी लकीर बनाओ, चुनिंदा हो तुम। मुण्डी हिलाना हर सेहत को अच्छा है, कभी-कभार रीढ़ भी आज़माओ, तो ज़िंदा हो तुम।

जागृति: सुबह-सुबह

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  रोज़   सुबह   शरीर   के   साथ   आत्मा   भी   जगे ,  बीते   कल   के   कामों   का   हिसाब   ले ,  और  काम   ऐसे   रहें   कि   आत्मा   को   कोई   रोष   न   हो।   यदि   कोई   मलाल   हो ,  तो   दुरुस्त  करने   की   मंशा   भी   हो।