मन्नत


श्रद्धालुओं से मंदिर खचाखच भरा था। भगवान के आसन तक पहुँचने के लिए मीलों लम्बी क़तार थी। भगवान को भी सबकी फ़रियाद सुनते-सुनते थकान-सी हो चली थी। वे अपने विश्राम के समय के इंतज़ार में थे। वे घड़ी पर टकटकी लगाए थे कि कब दोपहर के १ बजे, और मंदिर १ घंटे के लिए बंद हो। १ बजा, और मंदिर का मुख्य द्वार बंद हो गया। तीन श्रद्धालु मंदिर के अंदर ही रह गए। भगवान जी आँख मूँदकर विश्राम की तैयारी में उन तीनों को बारी-बारी से सुनते हैं। एक ने भगवान से बोला,

“ हे प्रभु! मुझे नौकरी दिला दो।”

भगवान ने सोचा चलो अब २ और बचे हैं। दो की सुन लूँगा तो मेरा १ बज जाएगा।

दूसरा आदमी, वहीं दंडवत होकर,

“भगवान! मेरी शादी करा दो, अगले साल ४० का हो जाऊँगा। जोड़े में आकर माथा टेकूँगा। 

भगवान ने राहत की साँस ली, चलो बस आख़िरी। 

वकील साहब अपनी काली कोट में थे, नतमस्तक होकर बोले,

“ भगवान, मुझे सही-सलामत रखना।”

ऊँघाई ले रहे भगवान को झटका-सा लगा। उन्होंने सोचा कि पेशे से वकील है, मुझे फँसा सकता है। उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और वकील से बोले,

“ तुमको किसी से ख़तरा है? ”

वकील साहब भौंचक्के रह गए। उनको लगा कि उनके कान बज रहे हैं। भगवान ने फिर बोला,

“ लोग धन-दौलत माँगते हैं। वैभव माँगते हैं। संतान माँगते हैं। तुम पहले आदमी हो जिसने यह विचित्र मन्नत माँगी है। मैं जानना चाहता हूँ कि तुम्हारी किससे दुश्मनी है?”

वकील साहब, होंश संभालते हुए भगवान से बोले, 

"नहीं प्रभु, मेरे कहने का मतलब है कि मुझे स्वस्थ रखें। बाक़ी तो मैं देख लूँगा। "

भगवान, "विस्तार से बताओ।”

"भगवन! यदि मैं शरीर से सही रहूँगा, तब मैं धन-वैभव कमा सकता हूँ।  यदि सब कुछ आप दे देंगे, और मैं बीमार रहूँ, तो ऐसा ऐश्वर्य मेरे किस काम का? मैं खटिए पर भोगूँगा, और दुसरे लोग उस धन का भोग करेंगे। "

भगवान को वकील बड़ा रोचक मनुष्य लगा। वे वकील से बोले, 

"तुम्हें स्वस्थ रखने का काम मैं नहीं कर सकता। "

"अरे प्रभु, ऐसा मैंने क्या माँग लिया? आप तो लोगों को हजारों साल जीने का वरदान देते आए हैं।"

"तुम्हें भी चाहिए हजारों साल जीने का वरदान, तो बोलो। लेकिन स्वस्थ जिओगे, मैं नहीं जानता। "

वकील साहब को लगा कि भगवान से निपटना तो कोर्ट-कचहरी से भी अधिक पैंतरेबाज़ी वाला खेल है।  फिर वे भगवान को समर्पण भाव से बोले,

"प्रभु, मुझे बख़्शिए, और स्वस्थ रहने का वरदान दीजिये। "

"तुम रात में कभी १० बजे, कभी १२ बजे खाना खाते हो; हमेशा अनायास ही जागरण करते हो; मदिरापान करते हो, कूड़ा-कचरा खाते फिरते हो। इतने आलसी हो कि कसरत एक न करते। तुमको लगता है कि जवान आदमी हो, बिना कसरत के ही सब सही रहेगा। तुम इतने सब रोगों के बीज बो रहे हो, तो मैं तुम्हे भला कैसे स्वस्थ रख सकता हूँ? मुझसे कुछ भी माँग लो, लेकिन अपना स्वास्थ्य ख़ुद सम्भालो।"

वकील साहब समझदार थे, भगवान की बातें उनको समझ में आ गईं। उन्होंने भगवान को उनकी मति ठिकाने लगाने के लिए कृतज्ञता ज्ञापित की, और नियमित-सात्विक जीवनचर्या का संकल्प लेकर मंदिर से बाहर निकले।





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