इस माटी को गढ़ने वाले कुम्भकारों को साष्टांग

मन में अकाल पड़ा है, 
तम विकराल पड़ा है। 
निशा घनघोर है छाई, 
जाती न कोई राह अपनाई।

कालिख की परत है मन में, लेकिन छिपे प्रकाश पुंज हैं।
किंकर्तव्यविमूढ़ जीवन में, गुरुवर राह-रश्मियों की गूँज हैं।

इन रश्मियों को पा पाने का, पथ सुगम बनाते हैं।
नल-नील स्वयं में हैं, सबको विश्वास दिलाते हैं।

सूरज है, सवेरा है, पर ये सब किताबी बातें हैं।
अंधे को ताजमहल घुमाने जैसी सौग़ातें हैं।

पंचमुखी सिंधु लाँघ गए जब जामवन्त ने जगाया था।
अर्जुन गांडीव धर लिए जब बासुदेव ने गीता गाया था।

वंदन है माटी के कुम्भकारों को जिन्होंने माटी को आकार दिया।
नमन है उन जामवंतों को जिन्होंने हनुमान को साकार किया।

-नवीन


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