माँ का साया (प्रतिलिपि से डिजिटल लेटर प्राप्त कहानी)

(माँ दिवस विशेष )

Art:Sooraj Thatiote, Designer

 एक ऐसी दर्दनाक सड़क दुर्घटना जिसने रमन के परिवार को चिर कालीन मायूसी में धकेल दिया । रमन और उनकी बीवी लीला अपनी बेटी रिया का चौथा जन्मदिन होटल में मनाकर घर वापस आ रहे थे । लौटते समय अँधेरा काफ़ी था । गाड़ी के सामने अचानक नीलगाय आ गयी और रमन गाड़ी का नियंत्रण खो बैठे । गाड़ी सड़क के किनारे एक पीपल के पेड़ में जा टकरायी । काश लीला ने अपने पति की बात मान ली होती । सीट बेल्ट लगा लिया होता तो बच जाती । वो हमेशा सीट बेल्ट को मज़ाक में लेती थी और उसको लगाने में अपनी सजावट की तौहीन समझती थी । उस रात रमन सीट बेल्ट हमेशा की तरह लगाये रखे थे । एअरबैग के समय पर फटने की वज़ह से बाल-बाल बच गये । रमन इस मंज़र को समझते और ख़ुद को सम्हालते कि उनकी नज़र उनकी धर्मपत्नी पर गयी । लीला अपनी सीट पर नहीं थीं । कार का सामने वाला काँच एकदम ध्वस्त हो चुका था, उसमे एक बड़ा गोलाकार छेद था । पीछे सीट पर रिया पहले से ही सोयी थी । अब भी कुछ नहीं बोल रही थी । अपने पापा की तरह रिया हमेशा कार में सीट बेल्ट लगाये रखती थी, चाहे वो आगे बैठे या पीछे । रमन होंश सम्हालते हुए कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकला। रम्या गाड़ी के बोनट के आगे नीचे गिरी पड़ी थी । माथे और नाक से खून हरहर बह रहा था । रमन ने रम्या को सम्हालने की कोशिश की लेकिन उनकी अंतिम साँसे चल रही थी । लीला केअंतिम शब्द थे -

"रिया कहाँ  ....?"

उनकी आत्मा ने शरीर को अलविदा कह दिया था । वो रिया की परछाई थीं। रिया में वो अपने अधूरे सपने देखती थीं । रिया को अपना पूरक मानती थीं । वो हर माँ की तरह रिया पर अपनी जान छिड़कती थीं । 

कभी-कभी तो बोलती भी थीं -"मेरी जान रिया में बसती है । "

रमन भी लीला को भुला नहीं पाये । उनकी यादों को हमराही बनाकर बची हुई साँसों की खानापूर्ति करने लगे । वो रिया को माँ-बाप दोनों का दुलार देने की भरपूर कोशिश करते थे । रिया पिता के होते हुए भी अनाथ जैसी रहने लगी । दिन-रात एक ही रट लगाए रहती थी ।

"मम्मी कब आएगी ?"

रमन उसको समझा नहीं पाए थे कि अब उसकी मम्मी कभी नहीं आएगी । लेकिन जब रिया की ज़िद बढ़ती गयी तब वो एक दिन रिया को उस पीपल के पेड़ के पास ले गये, जहाँ पर लीला ने दम तोड़ा था । रमन पेड़ की तरफ इशारा करते हुए बोले :

"रिया बेटा, आपकी मम्मी आजकल इसी पेड़ पर रहती हैं । आपके पापा से नाराज़ चल रही हैं, क्या पता आप मनाओगे तो मान जाँय । "

रिया दोनों हाँथ जोड़कर और आँख बंदकर :

"मम्मी प्लीज मान जाओ, हमारे साथ चलो, पापा को मेरे बाल झाड़ने नहीं आता  । वो तुम्हारे जैसा खाना भी नहीं बनाते । उनको कोई गाना भी नहीं आता । मैं रात में सो भी नहीं पाती, बिमला ऑन्टी मुझे अच्छी नहीं लगतीं , मुझे मम्मी चाहिए । ... "

रिया बोल कम और रो ज़्यादा रही थी । आँखों से मोती जैसे आँसू झरझर बह रहे थे । रमन ने सोचा कि वो कैसे मासूम बच्ची को ये सच बतायें । 

सब घर वापस गए । जैसे-तैसे समय कटता गया ।

   अब रिया के बाल अच्छे से सवरने लगे ।  वो खाना भी बड़े मन से खा लेती थी । वो रात में बिना पापा के ही सो जाया करती थी । घर में एक घर का काम करने वाली , बिमला, थी तो रमन ने सोचा कि वो ही रिया का ध्यान देती होगी । शायद उम्र के साथ अब रिया को भी आदत पड़ रही है । वो वास्तविकता को स्वीकारने लगी है । 

एक दिन बिमला नहीं आयी थी । रमन को घर से ही काम करना पड़ा । बाथरूम में १० साल की रिया नहा रही थी । लेकिन ढेर सारी बातें भी कर रही थी । उन्होंने बाथरूम का दरवाजा खोला तो रिया को अकेले पाया । 

"बेटा, ये बातें किससे कर रही हो आप ?"

"बुद्धू हैं , दिखाई नहीं देता ? मम्मी से । "

रमन थोड़ा झल्ला से गये । उसको लग रहा था कि रिया सब  कुछ समझ गयी है , लेकिन अभी भी वो वहीं चार साल की बच्ची थी । उसकी उम्र और कद मात्र बढ़ रहा था ,उसका बचपन बस वहीं बस गया था । वो आज रिया को सबक सीखाने की ठाने ।

रिया नहाकर निकलती है ।

"बेटा, आपको मम्मी ने नहलाया ?"

"हाँ पापा, वो मुझे अपने हाँथ से खाना भी खिलाती है और मेरे बाल भी बनती है और गाना भी सुनाती है और ....। " 

रिया का 'और' रमन के गुस्से को और बढ़ाता जा रहा था । अगले 'और' से पहले रमन ने लाल आँखों से रिया की आँखों में घूरते हुए चिल्लाकर बोला -

"तुम्हारी मम्मी मर चुकी है, वो कभी नहीं आएगी । "

"नहीं मेरी मम्मी मेरे साथ रहती है ... "

तभी गुस्से में रमन ने रिया को कसकर एक थप्पड़ मार दिया । रिया फुटफूटकर रोने लगी 

"मम्मी................"

तभी रमन के सामने लीला साक्षात प्रकट हो गई ।  वहीं साड़ी, सजावट जो उसने दुर्घटना की रात पहना था । माथे और नाक पे ख़ून के निशान थे । जैसे लीला ने उस बाद कभी पानी का स्पर्श ही न किया हो । उसकी आँखों में गुस्सा था ।  गुस्से से वो हाँफ रही थी । रमन को यह सब सपने जैसा लग रहा था । लीला ने अज़ीब सी पतली आवाज़ में बोला, जैसे उसने नाक में बोलने का अभ्यास किया हो , गुस्सा पहले से और अधिक था - 

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई रिया को छूने की, इसका कोई काम तुम नहीं करते हो, सब मुझे करना पड़ता है । "

"तुम कौन हो ? मेरी लीला तो ....."

हाँ .....मैं मर चुकी हूँ , लेकिन उस दिन पीपल के पेड़ के पास जब रिया रो रही थी तो उसकी हालत देखी नहीं गयी, तब से मैं रिया के साथ ही रहती हूँ , उसके साये की तरह । "

धीरे-धीरे लीला का गुस्सा कम होता गया । उसकी बातें लगातार थीं:

"पीपल के पेड़ पर मेरे जैसे कई सारे रहते हैं, वो भी रिया को बहुत पसन्द करते हैं । कभी-कभी मिलने भी आते हैं ।"

"मैं रिया की परछाई हूँ और रहूँगी । "

रमन को लीला की दशा देखकर बहुत रुलाई आ रही थी, तभी लीला ने बड़े पछताये हुए मन से बोला :

"तुम सही कहते थे, मुझे सीट बेल्ट लगा लेना चाहिए था । अगर उस दिन सीट बेल्ट लगा ली होती तो आज मैं रिया और तुम्हारे साथ होती । उस पेड़ पर बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जो मेरे पेड़ पर पहुँचते ही पूछे -

"तुमने सीट बेल्ट क्यों नहीं लगाया था ? हमारी वाली ग़लती दोहरा दी ! "

अब जो हो चुका था, बदला नहीं जा सकता था । रमन आजीवन सीट बेल्ट की महत्ता को बताने के लिए संकल्प लिये ।  जो उनके परिवार के साथ हुआ, किसी और के साथ न हो इसका प्रयास आजीवन करते रहे । उस घटना के बाद रमन ने रिया पर न तो कभी हाँथ उठाया, न ही कभी गुस्सा किया। लीला भी अपने उसी रूप में रिया के साये के तरह रहा करती थी । अपनी उस एक भूल का पश्चाताप करती हुई ..। 

**********सीट बेल्ट आपने लगाया ?*******

आपकी समीक्षा के लिए आभारी रहूँगा, जो मन में आये, लिख दीजिये !

-नवीन 

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