कोरोना कमज़ोर नहीं हुआ है, न तो हम मज़बूत। बहादुरी में न फसें।

सादर प्रणाम, 
कोरोना का दौर ऐसा चला कि बड़े लोगों से दोहरी बातें करा दिया। समस्या एक ही थी, लेकिन समय के साथ उसकी परिभाषाएँ-विशेषताएँ अलग होती दिख रही हैं। उसका अलग असर बताया जा रहा है। 
कुछ तथ्य:
१. 
सारे नेता, अभिनेता,
२४ मार्च २०२० 
संक्रमित व्यक्तियों की संख्या :519 (ज़ी न्यूज़, साभार)
प्रथम लॉकडाउन :घर में रहिये, बहुत ख़तरनाक है। 
आज, १३ जून २०२० 
संक्रमित व्यक्तियों की संख्या :2,97,535  (ज़ी न्यूज़, साभार)
#braveoutcorona, अगर हो भी गया तो कुछ नहीं होगा। बाहर निकलिए।
ये वाला प्रचार-प्रसार घातक सिद्ध हो सकता है। जहाँ मैं हूँ, वहाँ पर इससे जंग जारी है, लेकिन कभी इसके ख़िलाफ़ ललकार वाली कैंपेन नहीं देखा हूँ। 
इस दौरान कोरोना कमज़ोर हुआ हो या लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई हो?
२. आर्थिक स्तिथि बाहर निकले पर मजबूर कर रही थी, एकदम सही है, लेकिन न्यूनतम साधन के साथ बाहर निकलना चाहिए -N95 मास्क + २ मीटर की दूरी। इतनी बड़ी संख्या में मास्क सुलभ कराने का दायित्व सरकार पर ही है। मास्क मैन्युफैक्चरिंग, सप्लाई चैन, मुफ़्त या सब्सिडी,इत्यादि।


३. सरकार ने इस बिमारी को भारत में न आने के लिए बहुत सराहनीय कदम उठाए, इनका ज़िक्र मैंने पुराने लेखों में किया था। WHO के लोग भी लोहा मान रहे थे।

लेकिन, एक बार फैलने लगा तो सरकार इसके रोकथाम में धीमी, दिशाहीन और लाचार दिखी।

४. 'हमारे यहाँ लोग नहीं मानते जी' अकसर सुनाई देता है। यहीं लोग जब सरकार चुनते हैं तो 'जनता सब जानती है। ', 'जनता बहुत समझदार है।' लोगों के व्यवहार पर सवाल मतलब सरकार का स्वयं पर सवाल। 
 
५. सरकार ने बंद का समय केवल लोगों को समझाने में बिताया। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि लॉकडाउन वाले समय में सरकार टेस्टिंग का व्यापक ढाँचा तैयार करेगी। सरकारी स्वास्थ्य संस्थाएँ प्रति सप्ताह ज़मीनी स्तर पर ऐसा कुछ प्रयास नहीं दिखा। जिनको पूरे लक्षण थे, केवल उन्हीं की जाँच की गई। 

६. बीच में कुछ लोग जान-बूझकर आग लगाए और फिर निकल लिए। लेकिन उनका लेखा-जोखा लोगों के मन में लिखा जा चुका है। विश्वाश खोने पर वापस खरीदा नहीं जा सकता। 

७. प्रवासी मजदूरों की समस्या ने लोगों के देश-विदेश में लोगों के ह्रदय को तार-तार कर दिया। ऐसा नहीं था कि सरकार के पास इन मजदूर भाइयों का कोई आकड़ा नहीं था। शायद मैं ग़लत होऊँ, पर आधार कार्ड को हर जगह पर रोपने वाली सरकार यहीं है।
८. दबंग में छेदी सिंह (सोनू सूद) ने अपने आपको सबसे बड़ा हीरो बोला था। असली में वो पर्दे पर ख़लनायक थे। आज सही में मजदूरों के नायक हैं। उनके इस विराट काम को मेरा बहुत सम्मान, वो सितारों के योगी आदित्यनाथ हैं, Action on the ground । साथ ही उनके प्रयास सरकार की असफलता का जीवंत प्रमाण है। 

९ . सरकारी चिकित्सकीय संस्थान ने हाल ही में बोला कि जो मृत्यु हो रही हैं, ७५% लोगों को पहले से ही कोई बिमारी है। हाँथ धोया जा रहा है। 


ज़्यादा बड़ा लिखने का फ़ायदा नहीं है, मेरा स्वजनों से यहीं अनुरोध रहेगा कि बात 'अब आप अपना देखिए'  वाली है। 
किसी बहादुरी वाले campaign में न फसें। 
सफाई पर ध्यान दें। 
कम-से-कम बाहर निकलें।
बिना N-95 मास्क न निकलें। 
भीड़ में न जाँय।
२ मीटर की दूरी। 

सादर प्रणाम, सुरक्षित रहिये।
-आपका नवीन 






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