२१ दिन? दिनचर्या परिवर्तन एक समाधान

प्रणाम, शुभ रामनवमी !

२१ दिन ?
१४ घण्टे  के जनता कर्फ्यू के बाद मेरे गाँव में लोगों ने कहा कि ऊब गए हैं घर में रहकर। अब मुझे चिंता है कि २१ दिन में क्या हालत होगी। वैसे इस अभिव्यक्ति में बहुत ईमानदारी और नैसर्गिकता है क्योंकि गाँव में हर चीज का स्केल बड़ा होता है। जो कभी गाँव में नहीं रहे हैं उनके लिए इसके लिए यह 'स्केल' समझना थोड़ा कठिन होगा। हवा, पानी, जगह, सब इफरात में रहता है। और उससे ज्यादा होता है 'समय' जो इन प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर आनंद लेने के लिये बहुत अहम है । तो जिसकी स्केल जितनी बड़ी है उनको आने वाले २१ दिन उतने ही कठिन लगेंगे। क्योकि हमेशा हम बाहर न जा पाने के कारण की चर्चा करते रहेंगे। कुछ चंद बातों को दिनभर दूसरे लोगों से दोहराते नहीं थकेंगे। बार-बार कोरोना सम्बंधित समाचार देखते रहेंगे। मोबाइल, कंप्यूटर पे आँखें फोडेंगे। इन सबसे उपजेगा तनाव और मानसिक अस्थिरता। इसका कारण है कि हमारा शरीर जो कि सालों साल की दिनचर्या , lifestyle में ढल चुका है, वो एकाएक आये इस परिवर्तन को स्वीकार नहीं करता है। और हमारे दिमाग और शरीर के बीच एक गुप्त जंग छिड़ जाती है। शरीर की आदत होगी कि आज तो मुझे दफ्तर जाना है,फलाना काम है,  दिमाग उसको रोकेगा कि घर में रहना है। बचने का एक ही तरीका है कि अपने अंदर चलने वाले इस युद्ध को पहचानें, स्वीकारें और कम से कम दिनों में दिमाग-शरीर के बीच अस्थायी सुलह करा दें। सुलहनामा के तौर पर २१ दिनों की अस्थायी दिनचर्या होनी चाहिये। अब समय तो काटना ही पड़ेगा, दिमाग को पिंजरे में रखना है या पंख लगाना है निर्णय आपका होगा।

शरीर को मुआवजा :

शरीर को शिथिल न छोड़ें, जितना वो बाहर पहले जाकर अपनी कैलोरी तपाता था, उसका प्रतिपूरक घर में उद्यम करें। गांव में यह बहुत आसान है-चापा कल, चारा मशीन, खेत में सोहाई, गुड़ाई। किन्तु शहरों में चुनौती है। योगा, उसमे भी सूर्य नमस्कार जो भरभर के ऊर्जा खपाता है। अगर घर में बच्चे हैं तो उनके साथ खेलिये, उनकी ऊर्जा स्तर पर १ घंटा खेल लेंगे तो १ दिन के दफ्तर के काम की भरपाई हो जाएगी। कुछ नहीं तो १०० दण्डबैठक और बहुत बाहुबली हैं तो २० सपाट मार लीजिये। 

मन शरीर का इंजन है। तो इसका स्वस्थ रहना सबसे जरूरी है। 
मन को स्थिर करने के लिए बाबा रामदेव जिंदाबाद, इस समय इनकी देश को सबसे अधिक जरूरत है। मेरा मतलब योग गुरु से है। 

बच्चों का विशेष ध्यान:

(साभार कोरियन मनोचिकित्सक )
कोरिया में यह माहौल लगभग ३ महीने से है और यहाँ के मनोचिकित्सक सरकार को आगाह कर चुके हैं कि अगर जल्दी माहौल नहीं सुधारा गया तो अवसाद की चपेट में पूरा देश आ सकता है। यहाँ पर 'कोरोना ब्लू' शब्द का प्रचलन शुरू हो गया है। यहाँ के AIIMS जैसे हस्पताल के एक मनोचिकित्सक ने बच्चों का ध्यान देने पर विशेष बल दिया है। बच्चे इस बात को बता नहीं पाते लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उनके व्यव्हार में परिवर्तन रहेगा , जिद्दीपना ज्यादा होगा। ऐसी स्थिति में बच्चों को डाँटने, मारने पीटने से इनके दिमाग पर बहुत बुरा और दीर्घकालीन असर पड़ेगा। 

इन २१ दिनों में बच्चे को IAS , IIT का ऑनलाइन क्रैश course का तो एकदम मत सोचियेगा। मुसीबत में अवसर ढूंढने के बहुत रास्ते हैं। 
मेरा निवेदन है कि हम लोग व्यस्त जीवन के कारण जो समय बच्चों को  नहीं दे पाते उसकी भरपाई का अच्छा अवसर है। 

शौक़ (हॉबी) पूरी कर लीजिये:

क्या लिखूँ , आप ख़ुद ही समझ गए। स्याही, समय कागज का कंजूस हूँ। सबसे अधिक मूल्यवान आपका समय है। 

अपडेट रहें, तनावपूर्ण नहीं:

एक बात के लिए बहुत आश्वस्थ रहें कि कोई बड़ी अनहोनी न हो इसलिए सरकार ने यह कदम उठाया है, तो घड़ी-घड़ी कोरोना का अपडेट मत लीजिये। फेकबुक, माफ़ करियेगा, फेसबुक से तो कई कोसों की दूरी बनाइये। नहीं तो फेकबुक वाले कोरोना की फेक(नकली) दवाई भी निकाल देंगे और सारे शोधकर्ता अपनी लैब में ताकते ही रह जायेंगे। इन सब माध्यमों से मिलने वाले समाचारों से हमारे दिमाग में धीरे-धीरे तनाव जमा होता रहता है। क्योकि स्थिति युद्ध जैसी है तो अधिकांश समाचार थोड़ी नेगेटिव ही मिलेंगे, और फिर हमारी जिम्मेदार मिडिया को आप जानते ही हैं। सकारात्मक चीज का प्रचार करना पड़ता है लेकिन ऋणात्मकता के मुफ्त के पंख होते हैं। आप अगर दिन भर कोई भी मीडिया देखेंगे पढ़ेंगे सुनेंगे तो दो ही चीजें मिलेंगी - किसी न किसी रूप में कोरोना, दूसरा विज्ञापन। आपके डर का हर जगह व्यवसाय होता है।  
हाँ, दिन में एक-दो बार निर्धारित समय पर विश्वसनीय सूत्रों से अपडेट अवश्य लें।
कुछ बादल हैं, लेकिन नीला गगन अटल है। 

(कोरिया के अनुभव पर आधारित )
आपका शुभचिंतक ... 

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