अतिलघु कथा : पानी-पत्ती

नमस्कार ! आज जब हर काम करने से पहले हम सोचते हैं कि इसमें मेरा क्या फ़ायदा है, रिश्तों में मतलब निकालते हैं, उस समय यह कहानी जिसका शीर्षक है पानी-पत्ती सम्बन्धो को निभाने और कृतज्ञ बने रहने की प्रेरणा देती है। ठण्ड में ठहरा हुआ पानी जम रहा था। पानी के ऊपर एक पत्ती तैर रही थी । बड़े ही आनंद में हिलोरे लेती , कभी इठलाती, हरदम नहाती, तरो ताज़ा महसूस करती। पानी एक दिन पत्ती बोला- यहाँ से निकल जाओ अभी माहौल सही नहीं है। मज़े लेने बसंत में फिर आना। इतनी ठंडी तुम्हारे सेहत के लिए ठीक नहीं है। मेरी चिंता मत करना, जमना, पिघलना तो मेरी आदत है। पत्ती नहीं मानी, बोली- कुछ भी हो साथ ही रहूँगी । पारा थकते-थकते शून्य से भी नीचे जा गिरा। हर जगह बस सफ़ेद रंग की चादर दिखती। मानो प्रकृति ने सफ़ेद चादर ओढ़ ली हो। जिसका परिणाम यह हुआ कि पत्ती भी बर्फ के गर्भ में धंस गयी। लेकिन साँस ले रही थी। बर्फ़ बड़े गुस्से में था, लेकिन पत्ती को उस समय कुछ बोलने के बजाय उसकी जान बचाने में लग गया। बर्फ अपनी सा...