बढ़ना है तो पढ़ना है (कविता)


 गली-मोहल्ले और फुटपाथ सबका यही कहना है,

धरती से लेकर अंबर तक शिक्षा ही अक्षय गहना है।


चाँद-तारे और आफ़ताब कहते हैं यह सच बात,

शिक्षा के रक्खे जो ख़्वाब, सबसे ऊँची उसकी बिसात!


घर-मकान, जेवर-गहने सब समय-शीला पे घिसते हैं,

अजर-अमर है उसकी थाती, शिक्षा से जिसके रिश्ते हैं।


अचल सम्पत्तियाँ चल जाती हैं, वक़्त पे सब फिसल जाती हैं,

शिक्षा की सड़कें सतत हैं, कल, आज और कल जाती हैं।


रात कितनी ही क़हर होती है, हर रात की सहर होती है,

शिक्षा का दीया दिखाओ, काली रात भी दोपहर होती है।


झुग्गी- झोपड़ियाँ आज जो दाने-पानी की मोहताज हैं,

शिक्षा की सीढ़ी दो, इनके नसीब में तख़्त-औ-ताज़ हैं।


सुगंधित होता वह राज शिक्षा-सुमन जहाँ खिल जाते हैं,

वक़्त आने पे फूल बनें अंगारे, सिंहासन भी हिल जाते हैं।


हालातों से लड़ना है, कुछ भी हो सपने गढ़ना,

मूल मंत्र एक ही है कि बढ़ना है, तो पढ़ना है।

-काशी की क़लम

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