ज़िंदगी की क़िताब (कविता)

मेरी ज़िंदगी की क़िताब मेरे सामने आ गई है। समय के थपेड़ों से इसके पन्ने ख़ुद-बख़ुद खुल रहे हैं। क़िताब के कुछ पन्नों पे लिखा हुआ है। शायद इसे ही इतिहास कहते हैं। इसमें ऐसा बहुत-कुछ है जिससे मैं इत्तिफ़ाक़ रखता हूँ। इसमें बहुत ऐसे पन्ने हैं जिनका श्वेत रंग मेरे जीवन में रौशनी भरते हैं। इनका ज़िक्र मेरे हृदय को तरलता से भर देता है, जो मेरे चेहरे से छलक जाती है। इसमें चंद ऐसे भी कुछ पन्ने हैं, जिनको पढ़ना कठिन है। ये इतने काले हैं कि कोई उजाला बचता ही नहीं, जिससे इनको पढ़ा जा सके। इनपे घनघोर अंधेरा है। बहुत कोशिश करके इनको पढ़ता हूँ। मन करता है एक बार में पलट डालूँ। इन सबको एक बार में ही पार कर जाऊँ। लेकिन उजियारे पन्नों की उम्मीद में इनको पढ़ता जाता हूँ। ये पन्ने बहुत धीमे पढ़े जा पाते हैं। इनका समय गाढ़ा बीता। जी करता है कि इन पन्नों को फाड़ के क़िताब से अलग कर दूँ। मिटा दूँ वो सब-कुछ जो स्याह है, जिसमें आह है, जिसमें कराह है। फिर सोचता हूँ कि इन चंद पन्नों ने ही तो मेरी परिभाषा लिखी है। इन्हीं पन्नों ने तो मुझे मौक़ा दिया बनने का या फिर बिखरने का। कठिन दौर में भी...