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बच्चों की क़िताबें और The Giving Tree

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क़िताबें हमेशा ही मोहक होती हैं। उनमें बच्चों की क़िताबें की बात ही क्या! रंग-बिरंगी चित्रकारी शब्दों से कहीं अधिक बोलते हैं। शब्दों की पहचान नहीं रखने वाले बच्चे इन चित्रों को अपनी कहानी में डालते हैं। उनकी अपनी बुनी एक कहानी बन जाती है। ये क़िताबें गागर में सागर होती हैं। इनका मुख्य उद्देश्य नैतिक मूल्यों को आकर्षक ढंग से बच्चों को परोसना रहता है। बच्चों से अधिक लाभ इन पुस्तकों का बड़ों को मिलता है। वो भी अपनी नैतिकता को दुरुस्त कर सकते हैं। बच्चा जो सीख रहा है, अभिभावक को पहले से ही आता है। यदि भूल गया है, तो नैतिक मूल्यों पुनरावृत्ति का काम ये पुस्तकें बख़ूबी करती हैं। बुकस्टोर में “The Giving Tree” पर आज नज़र पड़ी। यह क़िताब अपने बच्चों को ज़रूर-से-ज़रूर पढ़िये-पढ़ाइएगा। Give and Take किसी रिश्ते से अछूता नहीं बचा है। ऐसे दौर में, यह पुस्तक ‘सर्वस्व निछावर कर देने’ की भावना पे बल देती है। दूसरी तरफ़, इसमें मानव के दुःखों की जड़ उसकी असीम, अतृप्त लालसा को दिखाया गया है। बच्चा अगर सुखी रहने का मंत्र माता-पिता, अभिभावक के गोद में सीख ले, इससे महत्त्वपूर्ण सीख भला और क्या हो सकती है! 

मशीनें संवेदनशीलता सीख रही हैं, पर मानव?

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 लाखों साल पहले धरती का जन्म हुआ। उसपे जीवन जन्मा। उन जीवों में से एक था मनुष्य। मनुष्य ने अपनी बुद्धिमत्ता से वातावरण से अनुकूलन स्थापित किया। कभी जानवरों की तरह रहने वाले मनुष्य ने समाज नामक संस्थान की खोज की। साथ रहकर उसने अपनी सुरक्षा बढ़ाई और एक साथ मिलकर बाधाओं को पटखनी दी। दुसरे जीव समाज की शक्ति को आत्मसात नहीं कर सके। समाज, संगठन, एकजुटता ने मानव की जीवित रहने की क्षमता को बढ़ाया। समाज का गठन संवेदना की नींव पर हुआ। संवेदना एक जीव के द्वारा अनुभव किये जा रहे भाव का दूसरे जीव पर होने वाला असर है। दुसरे पर यह असर जितना अधिक होता है, वह उतना ही अधिक संवेदनशील होता है।  इसी संवेदना की शक्ति की बदौलत मानव अन्य प्राणियों को पछाड़ते धरती पर अपना एकछत्र आधिपत्य स्थापित किया। डार्विन ने योग्यतम की उत्तरजीविता का सिद्धांत बाद में दिया। मनुष्य इसका प्रयोग पहले से ही करता आ रहा है। हज़ारों बरस पहले से ही मानव ने अपने आपको लगातार निखारा है। निखार के इस क्रम में मानव ने अपने आपको उस शिखर पर पहुँचा दिया, जहाँ वो अपने जीवित रहने के लिए पूर्णतया आत्मनिर्भर हो चुका है। 'पूर्णतया' कहने मे