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सितंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मौत की गली

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वो शहर की सबसे ज़िंदा जगह थी। रात ऐसी जगमग रहती कि जैसे सूरज अस्त हुआ ही नहीं। लोगों की ख़ुशियों का पैमाना वहाँ जाके छलकता था। जोश जैसे वहाँ की हवा में घुला हो। माहौल में ऐसी ऊर्जा कि कोई कितना ही मायूस हो, उन गलियों से गुज़ते वक़्त मुस्कान उसे गुदगुदा ही जाए । वाक़ई में वो जगह ख़ुशियो का पता थी। मगर आज की रात जश्न मनाने के लिए इंसान नहीं आये थे। वहाँ तमाम योनियों की भटकी हुई आत्माएँ आई थीं। जैसे उन आत्माओं ने अपना वास्तविक कपड़ा उतारकर, दूसरी योनि का चोला पहन लिया हो। ज़िंदा लोगों वाली सड़कों पे उस रात कंकाल ही कंकाल चल रहे थे। कुछ चेहरे ख़ून से लथपथ थे। कुछ ज़ोंबी के थे। नरभक्षी भी वहाँ ख़ून के प्यासे बने घूम रहे थे। चुड़ैलें भी अपने कटे-फटे चेहरों को सिलकर जश्न मनाने आई थीं। वो रात हैलोवीन की थी। लाखों युवक-युवतियाँ हैलोवीन का जश्न मनाने उस जगह इकट्ठा हुए थे। कोई कितना ही क़रीबी हो, अपने दोस्त को बिना परिचय पहचान नहीं सकता था। उन परिधानों ने सबकी पहचान मिटाकर उस रात की एक नई प्रेतीय पहचान दे दी हो। सब लोग हैलोवीन के कॉस्ट्यूम में थे। लोग एक-दूसरे के साथ फ़ोटो खींचके तुरन्त सोशल मीडि

मातृभाषा की एक परिभाषा

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 सादर प्रणाम! जिस भाषा में आप बोलना शुरू करते हैं, जिस भाषा में आप आप होते हैं, जिस भाषा में आपको कोई फ़िल्टर लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, जिस भाषा में आप मुस्कुराने से लेके हुँकारने तक का काम कर सकते हैं, जिस भाषा में आपके भाव बिन प्रयास बहें जिस भाषा को सीखने में आपको कम मेहनत करनी पड़े, और सबसे महत्त्वपूर्ण बात,  जिस भाषा को अंतिम साँस में भी बोला जा सके, वह आपकी मातृभाषा है। बाक़ी सब शुरू के अंत तक अपने आपको बनाए रखने का माध्यम है। मेरी यह सौभाग्यवश हिन्दी है। हिन्दी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएँ। -काशी की क़लम