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सीना तान के झण्डा फहराएँगे (कविता)

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अनन्त-सा पेट बड़ा है हमारा, मेहनताने से भरता नहीं बेचारा। ऊपरी आमदनी पे हक़ जताएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। दफ़्तर में फ़ाइल अपाहिज है, उसे बढ़ाने में बाबू जाता खीज है। जनता का, देश का समय गवाएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। देश-प्रेम जताना बहुत सरल है, भ्रान्तियों में उलझना गरल है। विरोध जताने ट्रेन-बसें जलाएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। जो काम करो, जी-जान करो। उन कर्मों को देश के नाम करो। दस्तूर ध्वज-सलामी का निभाएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। देशभक्ति एक अविरल मशाल है, देशहित सतत चिन्तन का सवाल है। भक्ति पुआल-सी जलाकर बुझाएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। घेरा हो घर में यदि घना अंधेरा, बिसात पे सत्ता हो ओझल सबेरा। देश-सीमा पे आग लगा रोशनी फैलाएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। कर तो है भारत माँ के दूध का कर्ज़  चुकाना उसको है देशभक्त का फ़र्ज़। छद्म देशभक्त पुरज़ोर कर चुराएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। कर सबकी बाज़ुओं को बल देता है, सपने साकार करने का धरातल देता है। नेता कर को वोट-बैंक में जमा कराएँगे, सीना तान के झण्डा फहराएँगे। धर्म की भट्टी को धधकाके, झूठे राष्ट्रवा

सुनाने को तो बहुत कुछ है, पर सुनने को क्या कान खुले हैं?

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मन्दिर-मस्जिद-गिरिजाघर। आस्था के स्थलों पे हम अपनी मन्नतें, फ़रियादें, विशेस (wishesh) लेके जाते हैं। अपने-अपने ईष्टों से अपनी समस्याएँ कहते हैं।उनके निवारण की अर्ज़ी देते हैं। अक़्सर हमारी लिस्ट इतनी बड़ी होती है कि कुछ-न-कुछ रह ही जाता है बताने को। बक़ाया अगली बार की लिस्ट में…। सब कुछ कह देने के बाद मन में एक हल्क़ापन-सा आता है। जिस पल हम अपनी बातें प्रभु से साझा कर रहे होते हैं, प्रभु भी अपने कहने की बारी की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। वो इस ताक में होते हैं कि कब भक्त की लिस्ट ख़त्म हो और वो अपनी बात कह सकें। प्रभु कुछ कहें, उससे पहले उनको चाहिए सुनने वाले कान…। अगर उनको लगा कि सामने वाले के पास बस ज़बान है, कान नहीं, तो वो अपनी ज़बान व्यर्थ नहीं करते। ऐसे में चुप्पी ही उचित साधना होती है। अधिकतर भक्त के हल्क़े मन का बोझ प्रभु के भारी मन को उठाना पड़ता है। यदि भक्त के कान खुले हों, तो भगवान समस्या का समाधान बताते हैं। इतना ही नहीं, वो उस समस्या के जड़ की भी पड़ताल कर लेते हैं! यदि कमी भक्त में हैं, तो फटकार भी लगाते हैं। यहाँ कान असली कान नहीं हैं!  ये हैं आत्मा रूपी कान। हर जागृत