समंदर

चला तो बनकर मैं कोमल नदी था, ज़माने में बहकर मैं पानी खारा हुआ, पोंछकर ग़ैरों के ग़म मैं पीता गया, मेरा पानी अब कोई क्यों पूछे, मैं तो समंदर बेचारा हुआ।१। बहुत से बंजरों को आबाद मैंने किया, बहुत से सपनों को साकार मैंने किया, आज भी उमड़ता हूँ मैं सबकी सिसकियों पर, लौट जाता हूँ किनारों के दिलों में उतरकर, वो कहते हैं-मैं तो समंदर नकारा हुआ।२। नहीं याद हो, तो पूछो दरारों से, उन पावों के ठोकरों से, पूछो हर राह पर मिली उन अनगिनत कठिनाइयों से, यक़ीन नहीं हो, तो पूछो मेरे अंदर के पर्वतों से, मैं तो सबके सड़कों के कंकड़ बहाता चला था, फिर भी मैं तो समंदर हर सड़क का मारा हुआ।३। ख़ुदा न करे, ज़िंदगी में ग़र तुम्हारे कभी सूखा पड़े, ख़ुदा न करे, आ जाए बाढ़ सिवानों में खड़े, कोसाते हो, तो भी मेरा ज़िक्र करना, मना लूँगा, बादलों में मेरी पहुँच बहुत है, क्योंकि मैं तो समंदर आदतों से आवारा हुआ।४। दूर से कोसना सही फ़ितरत नहीं, जानो मुझे, आओ मेरी ख़िदमद में यहीं, डूबकर मेरी आँखों की गहराइयों में तो झांको, धरा पे जब कुछ भी नहीं था, मिलो उन यादों को, मौन को कुछ नाम द...