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उप-नामकरण के तारे

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नमस्ते 🙏!  अगर आप यह कागज़ पढ़ पा रहे हैं तो स्वाभाविक है कि आप स्कूल , कॉलेज पक्का गये होंगे । जहाँ पर शुरू में मम्मी- पापा  आपका जाँच-परख के दिये हुये नाम से दाख़िला कराते हैं । लेकिन जैसे-जैसे कॉलेज 🏛️ का काल-चक्र चलता जाता है , आपको एक नये नाम मिलने के योग बनते जाते हैं । जी हाँ, अगर आप अभी तक आकलन लगा पा रहें है  इस  पन्ने के विषय का तो मन-ही-मन  शाबाश बोल लीजिये ।किसी भी रेकॉर्ड में न लिखे जाने वाले इस अटल नाम को मेरी  भाषा में उपनाम कहते हैं । इस उपनाम की असली नाम से बड़ी सारी भिन्नतायें हैं । फिर भी ये दोनों एक ही आदमी के साथ आजीवन शांतिपूर्ण रहकर एक सुदृढ़ लोकतान्त्रिक व्यवस्था के जवलन्त उदाहरण का काम करते हैं। असली नाम माता-पिता आपके जन्म के ग्रह-नक्षत्रों ☄★ के हिसाब से रखवाते हैं । उपयुक्त नाम रखने का उद्देश्य होता है कि इससे प्रेरित होके आप चाँद-मंगल पर जाने जैसा कुछ तूफ़ानी कर्म करें । उपनाम रखा जाता है आपके कर्मों के को देख कर । आपका व्यवहार ही आपके उपनाम के लिये तारा होता है ।  असली नाम में ज्ञानी पंडित जी की जरूरत होती है , उपनाम होता है कर्मणा जायते ब्राम्हण: वा

बहू भी बेटी जैसी : एपिसोड १- बहू , बेटी और बैग

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नमस्ते 🙏!  मेरे  क ,  ख ,  ग  वाले  पहले  पोस्ट  को  हाँथों  हाँथ  लेने  के  लिये  भारी  भरकम  आभार। अहसास  हुआ  कि  काशी  के  इस  देसी  कागज  के  ग्लोबल  व्यूज़ 👁️👁️ भी  हो  सकते  हैं ।  कुछ  अग्रजों  ने  तो  बोला  कि  वे  अगली  कड़ी  का  इंतज़ार  करेंगे।  इससे  आकांक्षाओं  के  दबाव  में  कलम  थोड़ी  गाढ़ी  हो  गयी  है ।  प्रयास  कर  रहा  हूँ ,  थोड़ा  सम्भाल  लीजियेगा।   जिस  किताब  का  ज़िक्र  मैंने  किया  था,  उसका  केंद्र  बिंदु  है  सास - बहू।  किताब  के  कुछ  पन्ने  पढ़ते  समय  स्मृति  इरानी  वाला  ‘ क्योंकि  सास  भी  कभी  बहू  थी ’  याद  आ  गया।  कहानी  रोचक  लगी  इसलिये  पढ़ाई  जारी  है । लेकिन  इस  मेड - इन - काशी  के  तख़्ते  पर  केवल  वहीं  विषय  आ येंगे  जो  भारतीय  रस्मों  रिवाजों  से  मेल  खाते  हैं। बेमेल  की  चीज़ें  बताके  आपके  दिमाग  से  अनायास  कसरत  नहीं  कराऊँगा। प्रयास  रहेगा  कि  आप  तक  भावनायें  पहुँचे , महज  अनुवाद  नहीं । और  बीच बीच  में  होगा  मेरे  हलके  पॉवर  वाला  चश्मा ,  जो  कि  समाज  को  देख देख  के  लगा  है ,  न  कि  पोथी  पढ़