संदेश

जून, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रेमी पथ (कविता)

चित्र
मंज़िल, दूर से लगती बड़ी मुश्क़िल है, नज़दीक से पाया, ये तो नरम दिल है। मंज़िल से पहले शंकाएँ मिल जाती हैं, लेने धैर्य-परीक्षा मज़िलें बल खाती हैं। सोचके बाधाओं की, पग न बढ़ा जाता है, लगता है मज़िल-मार्ग टेढ़ा-मेढ़ा जाता है।  मज़िल भावी भविष्य, कोरा सपना है, पथ प्रकाशपुंज ही तो केवल अपना है।  मंज़िल की चाह में हम राहों से बेवफ़ा हुए, प्रेमी तो पथ हैं, न दफ़ा हुए न खफ़ा हुए। मज़िलें छलावा, कोरे काग़ज़, बेमाइने हैं, रास्ते तो रौशनी, कहानी औ’ आईने हैं। -काशी की क़लम

कच्चाई

चित्र
वो कच्चे मक़ान कच्ची सड़कें कच्ची गलियाँ कच्चे आँगन कच्चे दालान कच्चे अरमान  कच्चे मेल  कच्चे खेल  अब पक्के होते जा रहे हैं,  लोगों के दिल भी पक्के हो रहे हैं। पक्के, सख़्त पत्थर के जैसे! -काशी की क़लम