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विनम्र श्रद्धांजलि: स्व. श्री परमानन्द सिंह (पी. एन. सिंह) जी

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आज क़लम का रक़्त गाढ़ा है, हृदय आपर पीड़ाओं से भरा हुआ और नेत्र अदृश्य अश्रुओं से पूरित हैं। धर्मपत्नी श्रीमती गीता सिंह के पिता श्री परमानन्द सिंह जी 28 दिसंबर 2024 को ब्रह्म में विलीन हो गए। दुःख की घड़ी धीमी चल रही है। मन नियति के इस कठोर निर्णय को स्वीकार करने का दुरूह प्रयास कर रहा है, परन्तु यह अत्यंत कठिन है। किराए की काया को छोड़कर, यह दिव्य आत्मा अपने मालिक प्रभु के श्री चरणों में चली गई। किरायेदार के बसर की सफलता का मानक है कि व्यक्ति प्रवास में कितना मानव बना रहा? वह बिना किसी ‘सुदूर’ स्वार्थ के दूसरों के कितना काम आया। दूर के लोग भी उसकी कमी की अनुभूति करें। इन मानकों पर स्व. परमानन्द सिंह जी ने आदर्श प्रस्तुत किया। आपके द्वार पर आशा से आया हुआ कोई भी निराश नहीं लौटा। मुश्क़िल घड़ी में जो चेहरा सबसे पहले ध्यान आए, वह चेहरा प्रभु का ही रूप होता है। आप आशा की वह दिव्य किरण बने रहे। बतौर कोल माइन्स कांट्रैक्टर आपने अधिकारियों तथा श्रमिकों के साथ काम किया। अपने अधिकारियों से आपने खूब स्नेह और सम्मान कमाया जिसको अपने श्रमिकों पर और अधिक बढ़ा करके लुटाया। कार्य स्थल को अलविदा कहन...

गुलाल भवन की धरोहर : श्री नरेंद्र बहादुर सिंह जी, सामाजिक विज्ञाता

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ज़माना पल-पल बदल रहा है। इस बदलते ज़माने की रफ़्तार को पकड़ने की आदमी भरपूर कोशिश कर रहा है । बदलाव ज़रूरी भी है। मगर तभी तक, जब तक कि सकारात्मक हो । मेरी जबसे समझने-बूझने की उम्र हुई, गाँव के एक परिवार से मैं हमेशा प्रेरित होता रहा। मैंने कभी उनको देखा नहीं, लेकिन उस परिवार के स्वर्गीय श्री मोतीचंद सिंह की उदारता, कर्मठता और उद्यमशीलता की कहानियाँ सुनते हुए बड़ा हुआ (उम्र में)। आज यदि किसी के पास धन है, तो वो अपना दायरा सीमित करना चाहता है, ताकि किसी को देना न पड़ जाए। आप महापुरुष ने स्वयं को तो सीमित किया लेकिन आस-पास के लोगों, सगे-सम्बन्धियों के लिए अपना हृदय विशाल समुंदर कर दिया । आपके हवेलीनुमा घर जैसा गाँव में तो क्या, पूरे क्षेत्र में आज भी वैसा घर नहीं बन पाया। घर की बालू-सरिया-ईंट भले ही पैसे से आती होगी , परन्तु ये घर को शरीर मात्र दे सकते हैं। घर बनाने में हुए परिश्रम, तप, परित्याग और समर्पण उसको प्राण देते हैं। ये सब घर की आत्मा होते हैं। प्राण बिना शरीर का अस्तित्व कहाँ! घर को बनाने में हुई परिकल्पना सदा उस घर में वास करती है। जैसे स्वार्थ की परिकल्पना में बनाया हुआ घर कभी...