कितने पाकिस्तान। कमलेश्वर । मुर्दों की आत्माओं को झकझोरती, बची-खुची मानवता की रक्षा में लिखी गई कृति।
मुर्दों की आत्माओं को झकझोरती, बची-खुची मानवता की रक्षा में लिखी गई कृति। मित्र डॉ. हरेंद्र जी ने यह किताब ने सुझाते वक़्त बोला था कि एक अच्छा लेखक कितना खुलकर सोचता है, यह इस किताब से सीखने लायक़ है। उनकी यह बात हर पन्ने पे ज़हन को छू जाती थी। हर जगह कमलेश्वर जी सवाल करते हैं, किसी के कृत्य के पीछे के कारण की जड़ें खोदकर ही मानते हैं। इतिहास के अनकहे पहलुओं को सामने लाते हैं। मानव जाति की रक्षा में लिखा गया यह उपन्यास भारत के बँटवारे के कारणों के इर्द-गिर्द घूमते हुए, दुनियाँ के ऐसे सभी नए बन रहे देशों का ज़िक्र करता है, जिनकी बिनाह सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रत है। यह उपन्यास मूलतः इतिहास ही है, जिसको इतने रोमांचक, ओजपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया गया है कि एक थ्रिलर की उत्सुकता बनाए रखता है। यह पूरे विश्व का इतिहास है। यदि आपने युआल नोवा हरारी जी की ‘सेपियंस’ पढ़ी हो, तो ‘कितने पाकिस्तान’ मानव जाति के इतिहास का उससे भी व्यापक दृष्टिकोण रखती है। जगह-जगह हँसी-मज़ाक़ भी गुदगुदाने का काम करते हैं। रात के बिस्तर में रतित्व बिखेरना हो, चाहे युद्ध के मैदान का भीषण संहार का वर्...