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संघर्ष के सफ़र में ही सफलता का शिखर है- प्रोफ़ेसर डॉक्टर हरेंद्र नारायण सिंह।

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मित्र हरेन्द्र को डॉक्टर हरेन्द्र बनने पर हम लोगों को बहुत गर्व हुआ था। उससे भी अधिक गर्व अब हो रहा है, जब आप डॉक्टर हरेंद्र से प्रोफ़ेसर डॉक्टर हरेंद्र बन रहे हैं। पहली यात्रा भी आसान नहीं रही होगी। लेकिन उसका सफ़र बहुत हद तक अपेक्षित ही रहा होगा। दूसरी यात्रा अदम्य और अप्रतिम है। अपने सपने को साकार करने के लिए अथक परिश्रम, अथाह आशा और अनवरत प्रयास करते रहने की यह गाथा प्रेरणा का सागर है। इन दोनों यात्राओं से पहले आपने एक और, शायद अभूतपूर्व, यात्रा की थी। इण्टरमीडिएट तक विज्ञान वर्ग की शिक्षा के बाद स्नातक के लिए कला वर्ग का चुनाव विरलय लोग ही कर पाते हैं। अंतरात्मा की आवाज़ का बाहरी शोर से ऊँचा होने पर ही ऐसे निर्णय लिये जा सकते हैं। आपकी यात्रा ने यह सिद्ध किया कि कला के रास्ते संघर्ष ज़रूर है, पर संतोष भी है। मन के किसी कोने में कला वर्ग का प्रेम दबाए बैठे छात्रों को आपकी यात्रा स्वर देगी। आज के दौर में जब हमारे इर्द-गिर्द नकारात्मक उदाहरण इतने हैं कि लोग इन्हीं को अपना परितंत्र मान ले रहे हैं। सफलता के लिए सही रास्ते के जगह आसान रास्ते का चुनाव हो रहा। सही रास्ते टूटते जा रहे हैं,