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क़लम की विटामिन

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जब लिखाई शुरू हुई थी, उस समय केवल भावनाएँ थीं। जैसे लिखने का ल भी न जानने वाले को कलम थमा देना ! भाषा ज्ञान न के बराबर था। जैसे, जो बात मन में आती, कागज़ पे उतरती जाती। व्याकरण, वर्तनी छटपटा कर कहीं कोसो दूर रह जातीं।  आप लेखनी के विटामिन रहे हैं। एक दिन भैया से बात हुई। उन्होंने व्याकरण और वर्तनी में सुधार करने का सुझाव दिया। व्याकरण मैंने पढ़ लिया। वर्तनी को लेकर भी सजग हो गया।  लेकिन अपने (लिखे) में कमी ढूढ़ पाना मुश्क़िल होता है। अपनी कहानी सदैव सही लगती है। इसका हल भैया में ही मिला। सुधार के लिए मैं हर बार भैया से गुहार करने लगा। शायद ही ऐसी कोई कहानी या लेख हो, जिसका परिमार्जन उन्होंने ने न किया हो। 'हुण्डी' कहानी की समीक्षा में भैया की लिखी कविता से भाव-विभोर हो गया। ख़ैर, ऐसा उन्होंने विटामिन भरने के लिए लिखा है, उनको मालूम है कि सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है और रहेगी। कविता का दूसरा पहलू यह भी लगा कि भैया मेरे लिखे से पक गए हों और जी छुड़ाना चाह रहे हों।  फिर मैंने अपनी पटरी से उतरी सोच को वापस पटरी पर ले आया। नादान क़लम इस विटामिन के लिए आभारी है।    -काशी की क़लम   साभार: श