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क़ानून के प्रतीक का उद्भव (इवोल्यूशन) आवश्यक है।

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क़ानून के प्रतीक का उद्भव (इवोल्यूशन) आवश्यक है।  ट्रेन का अनोखा अनुभव एक बार ट्रेन में एक दृष्टिहीन आदमी कुछ सामान बेच रहा था। एक यात्री ने चालीस रुपये का सामना ख़रीदा। यात्री ने दस का नोट अंधे के हाथ में थमाते हुए बोला लो पचास रुपये का नोट। अंधे ने नोट को एक हाथ की तर्जनी और अँगूठे के बीच पकड़ा और दूसरे हाथ की उन्हीं दो अंगुलियों के बीच से पूरी नोट को सर्र-से सरका दिया। मानो रेल की पटरी रेल की लम्बाई नाप रही हो! अंधे ने बिना किसी आश्चर्य के बोला “ ये दस का है!” असल में यात्री को भी बेईमानी नहीं करनी थी, वो एक परीक्षा ले रहे थे। कमज़ोर के लिए कसौटी क़दम-क़दम पे बिछी रहती है। कोई भी उठकर परीक्षा ले लेता है। यात्री का चेहरा पानी-पानी हो गया! कुछ ज्ञान-विज्ञान शोध से यह सिद्ध हुआ है दृष्टिहीन व्यक्ति की बाक़ी की ज्ञानेन्द्रियाँ-सुनने की शक्ति, स्पर्श करने की शक्ति, सूँघने की शक्ति-आम दृष्टि वाले से कहीं अधिक विकसित होती हैं। दिमाग़ अपने कनेक्शन इस प्रकार जोड़ लेता है कि न देख पाने की कमी की भरपाई दूसरी इंद्रियाँ कर देती हैं।  निष्पक्ष न्याय के लिए क़ानून को अंधा दर्शाया गया है। यह प्रतीक