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विवेकानन्द द्वारा विश्व समृद्धि का मार्ग-अध्यात्म और उद्यम का समन्वय। उस सपने के लिए संघर्षरत प्रवासी भारतीय कितने सफल हैं?

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विवेकानन्द जी जयन्ती पे उनको नमन। अध्यात्म। अध्यात्म को वो जीवन की आधारशिला मानते थे। जिसने ख़ुद में ख़ुदा न पाया, उसने जीवन व्यर्थ गँवाया।  उन्होंने भारत के अध्यात्म को दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बहुत उन्नत पाया। उनके हिसाब से भारत की सबसे बड़ी ताक़त अध्यात्म थी। इसी के बलबूते यह देश हज़ारों साल घुसपैठियों को मुस्कुराकर सहता गया। उनको भारत में व्याप्त ग़रीबी, भुखमरी, स्त्रियों की दशा, भेद-भाव-इत्यादि के काँटे चुभते थे। भूखे भजन न होय गोपाला। इसका उपाय ढूँढ़ने के लिए उन्होंने पश्चिम की ख़ाक छानी। दूर के ढोल सुहाने लगते हैं। पश्चिम में उन्होंने आकर देखा कि भौतिकवादी इस दुनिया में कुछ कमी है। पेट तो भरे हैं, पर आत्मा सबकी अतृप्त है। लोग खोखलेपन से ग्रसित हैं। उस अधूरेपन को पूरा करने के लिए उन्होंने पश्चिम को अध्यात्म का रास्ता दिया। दूसरी ओर आध्यात्मिक भारत के काँटें को काटने के लिए उन्होंने पश्चिम की तरह उद्यमी बनने को कहा। माला तभी फेरा जा सकता है, जब उँगलियों में ऊर्जा रहेगी! जीवन की नाव की दिशा संतुलित रहे, इसके लिए अध्यात्म और उद्यम के दोनों चप्पू चलने चाहिए। उन्होंने कई देशो