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धरती तेरे कितने रूप ! डॉ. रामसुधार सिंह

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नोट: इस लेख को समीक्षा के तौर पर पढ़ने के बजाय पुस्तक के परिचय के रूप में  पढ़ा जाए,  क्योंकि काशी की  नादान क़लम इस कृति की समीक्षा के लिए आवश्यक बौध्दिक क्षमता नहीं रखती!   काशी और काशी-वासी। हम काशी को जितना समझने की कोशिश करते जाते हैं, यह रहस्य की उतनी ही नई परतें चढ़ाते दिखती है। वैसे ही यहाँ के सिद्ध पुरुषों का हाल रहा है। इन सिद्ध पुरुषों की एक ख़ासियत रही है कि इन्होंने कभी अपने अध्यात्म, ज्ञान और कला का प्रचार नहीं किया। योग के महान गुरु लाहिरी महाशय जी ने योग के प्रचार करने की बात पे कहा था, “ जिनको प्रकाश चाहिए, वो ख़ुद दीया ढूँढ़ते आएँगे...” ऐसे ही  काशी स्थित राजर्षि उदय प्रताप कॉलेज की तपस्थली में  हिंदी भाषा-साहित्य के  सिद्ध पुरुष हैं-हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष आदरणीय डॉ. राम सुधार सिंह सर जी। मुझे  इन दीये के प्रकाश तले देरी से मिलन का मलाल भी है। ऐसे प्रकाश पुंज अपने ही कुंज में ही थे, और मैं इधर-उधर भटक रहा था !   उदय प्रताप इण्टर कॉलेज के मेरे छात्र जीवन में सर जी कॉलेज के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों का संचालन किया करते थे। दीप प्रज्ज्वलित होते समय उनका ‘असतो मा स